जीवन के आरंभ से मनोरंजन का भी आरंभ हुआ। लोग एक साथ बैठतें थे और फिर एक व्यक्ति स्टोरी सुनाता था। समय के साथ नाटक आरंभ हुए और फिर मोशन फिल्मों ने मनोरंजन के मायने बदल दिए। साइलेंट फिल्मों से शुरू हुई यात्रा रंगीन फिल्मों तक पहुँच गई। अब आप अपने मोबाइल पर बैठे - बैठे फ़िल्में देख सकतें हैं। लेकिन इस यात्रा में एक डायनमिक जो बदल गया और जो बहुत महत्वपूर्ण है, वो है लोगों का अकेले बैठकर सिनेमा देखना।
अकेला बैठा व्यक्ति जब सिनेमा देखता है तो उसकी मानसिकता भीड़ से अलग होती है। वो तब ही हँसता है, जब उसे चुटकुला समझ में आता है। इसके उलट भीड़ भरे सिनेमा हॉल में सब साथ हँसते हैं, कई बार वो भी हँसतें हैं, जिन्हें कुछ समझ में भी नहीं आया। इसलिए अकेले बैठे व्यक्ति के फिल्म देखने के कारण डायनमिक्स बदल गया है। जिस स्टार की एंर्टी पर सिनेमा हॉल में तालियों और सीटियों का शोर मच जाता था, उसे अकेला बैठा दर्शक स्किप कर देता है।
सदियों से होते बदलाव के बीच जो एक चीज शाश्वत सत्य है, वो है अच्छी - बेहतरीन कहानी। इसलिए आज भी सबसे अधिक मेहनत लिखाई पर जरुरी है। बहुत से मित्र हैं, जो ख़यालों की दुनियाँ में विचारों की गठ्ठर लेकर घूमतें रहतें हैं। उनके लिए जरुरी है कि वो अपने आईडिया को कहानी का रूप दें। कई बार आप देखेंगे कि जो आईडिया, आपको बहुत दमदार लग रहा था, वो कुछ पन्नों पर ही दम तोड़ देता है। इसलिए कहानी को पूरा लिखना बहुत जरुरी है।
कहानी से स्क्रिप्ट लेखन अपने आप में एक नया सफर है। कहानी और स्क्रिप्ट लेखन एक नदी के दो पाट हैं जो निरंतर साथ चलतें हैं लेकिन उनका मिलन कभी नहीं होता है। स्क्रिप्ट लिखने का कोई फॉर्मूला नहीं है लेकिन कुछ दिशानिर्देश जरूर हैं तो उन दिशानिर्देशों का समझना जरुरी है। एक बार दिशानिर्देश समझ में आ जाए तो उसे अपनी समझ और कहानी के हिसाब से जोड़ - तोड़ करके अपनी स्क्रिप्ट लिखें लेकिन बिना दिशानिर्देश को समझे, बस इस धुन में लिखते जाना कि मैं कुछ अलग लिख रहा हूँ, सिर्फ और सिर्फ एक मूर्खता है। जो सभी नए लेखक करतें हैं।
कभी फिर बैठेंगे साथ मीर और ग़ालिब,
कभी फिर जफ़ा-वफ़ा से अलग बात होगी।
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